Wednesday, January 3, 2018

आग

कोहरामों की गूँज में कलरव कहीं खो गया,
आज भूखे पेट एक और शैशव सो गया!

यूँ झुलसते शहरों को देखकर अब माँ भारती भी रोनेवाली है,
तू भी जागेगा भाई मेरे, नींद मुझे भी कहाँ आनेवाली है?

लड़ लेते हैं एक दूसरे से, अगर बदहाली मिटा सके,
कलम कर लेते हैं शीश तेरा मेरा, अगर गरीबी घटा सके,
अगर जानता है कि इन हिंसाओं से कुछ नहीं मिलने वाला,
थोड़ा प्यार कहीं से उधार ले लो, एक दूसरे पर हम लुटा सके

इतिहासों की तारीखें भी यहीं बयान करती है,
एक अकेली हुई टहनी आसानी से कटती है,
जुटे हुए झुंडों को तो शेर भी नहीं छू पाता,
दिक्कत तब आती है जब वह अनेकों में बटती है

होगा बस इतना सा कि कई तकवादी पापड़ बैल लेंगे,
तुम और हम लड़ते रह जायेंगे, वहाँ दरिंदे अपना खेल खेल लेंगे.
फिर भी अलग रहकर लड़ने की बात जो तुमने ठानी है,
मत भूलना भाई मेरे, भारत की परतंत्रता की भी यही कहानी है





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